शिवसेना ने देखे कई उतार-चढ़ाव: झेली कई बगावत

मुंबई। महाराष्ट्र में 2019 में हुए विधानसभा चुनाव से पहले शायद ही किसी ने सोचा होगा कि शिवसेना के शांत से दिखने वाले नेता उद्धव ठाकरे अपने पुराने सहयोगियों से दूरी बनाकर विपक्षी दल कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) के साथ सरकार बनाने का साहस दिखाएंगे। ठाकरे ने दोनों दलों के समर्थन से न सिर्फ सरकार बनाई बल्कि मुख्यमंत्री भी बने लेकिन ढाई वर्ष बाद उनकी सरकार पर संकट के बादल तब छा गए जब सहयोगियों ने नहीं बल्कि उनकी अपनी पार्टी के विधायकों ने ही बगावत कर दी। बड़ी संख्या में विधायक बागी नेता एकनाथ शिंदे के साथ हो लिए और संकट इतना गहरा गया कि उद्धव ठाकरे को मुख्यमंत्री पद से बुधवार को इस्तीफा देना पड़ा। राज्य में जब राजनीतिक संकट जारी था तब 22 जून को ठाकरे ने फेसबुक पर सीधे प्रसारण में कहा था,‘‘ मैं जो भी करता हूं, चाहे वह मेरी इच्छा हो या नहीं…मैं पूरे इरादे के साथ उसे करता हूं। उनकी यह दृढ़ता उनके पूरे करियर में दिखाई भी दी और इसके चलते शिवसेना को भी उतार-चढ़ाव देखना पड़ा। शिवसेना संस्थापक बालासाहेब ठाकरे के 2012 में निधन के बाद उद्धव ठाकरे ने पार्टी के कार्यवाहक अध्यक्ष और प्रमुख का पद संभाला। बालासाहेब ठाकरे के इस सबसे छोटे बेटे को ‘दिग्गा’ के नाम से भी जाना जाता है और उन्होंने 1990 से ही पार्टी के कामकाज में पिता का हाथ बंटाना शुरू कर दिया था। उद्धव को उनके चचरे भाई राज ठाकरे की जगह तरजीह देकर 2001 में पार्टी का कार्यकारी अध्यक्ष नियुक्त किया गया था। हालांकि तेज तर्रार और सीधी बात करने वाले राज ठाकरे को सीधे सादे से दिखने वाले उद्धव की तुलना में ज्यादा पसंद किया जाता था।